अशोकसुंदरी हिंदू पौराणिक कथाओं में एक महत्वपूर्ण और कम ज्ञात देवी हैं। वे भगवान शिव और देवी पार्वती की पुत्री मानी जाती हैं। उनके नाम का अर्थ है "अशोक" (दुखरहित) और "सुंदरी" (सुंदर), जिसका मतलब है कि वे सौंदर्य और शांति की प्रतीक हैं। उनकी कथा शिवपुराण और अन्य ग्रंथों में वर्णित है।
अशोकसुंदरी की कथा
जब देवी पार्वती ने कैलाश पर्वत पर अकेलापन महसूस किया, तब उन्होंने कल्पवृक्ष (इच्छा पूर्ति करने वाला पेड़) से एक पुत्री की कामना की। इस पेड़ से अशोकसुंदरी का जन्म हुआ। उनका जन्म पार्वती के जीवन में आनंद और शांति लाने के लिए हुआ था।
उनके विवाह और जीवन की कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार, अशोकसुंदरी का विवाह राजा नहुष से हुआ था। नहुष एक बहुत ही पराक्रमी और धर्मात्मा राजा थे, जिनके साथ देवी अशोकसुंदरी का भविष्य पहले से ही तय था। उनकी कथा में कई दानव और संघर्ष का भी उल्लेख मिलता है, लेकिन अंततः सबकुछ सुखद होता है।
धार्मिक महत्त्व
अशोकसुंदरी को मुख्यतः शक्ति और स्नेह की देवी के रूप में पूजा जाता है। हालांकि, वे तुलनात्मक रूप से कम प्रसिद्ध हैं, लेकिन उनकी कथाएं हिंदू पौराणिक साहित्य में एक गहन संदेश देती हैं।