सती माता, जिन्हें दाक्षायणी के नाम से भी जाना जाता है, हिंदू धर्म की प्रमुख देवी हैं। वह भगवान शिव की पहली पत्नी थीं और दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं। सती का विवाह शिव से हुआ था, जो देवताओं के लिए भी अप्रत्याशित था क्योंकि शिव एक तपस्वी और सरल जीवन जीने वाले देवता थे। सती माता की कथा महाभारत, पुराणों और अन्य धार्मिक ग्रंथों में विस्तृत रूप से वर्णित है।
सती माता की कथा
विवाह
सती दक्ष प्रजापति की पुत्री थीं और वह शिव की आराधना में लीन रहती थीं। उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनसे विवाह किया। हालांकि, सती के पिता दक्ष प्रजापति इस विवाह से संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि शिव को वह एक उपयुक्त वर नहीं मानते थे।
यज्ञ और सती का आत्मदाह
दक्ष प्रजापति ने एक विशाल यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया। जब सती को इसका पता चला, तो वह बिना आमंत्रण के यज्ञ में पहुंच गईं। यज्ञ स्थल पर दक्ष ने शिव का अपमान किया और सती को भी उनके पति का अपमान सहन नहीं हुआ। अपमान और क्रोध से आहत होकर, सती ने यज्ञ अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए।
शिव का क्रोध
सती की मृत्यु के बाद, शिव ने क्रोध में आकर वीरभद्र और भद्रकाली को उत्पन्न किया और उन्हें दक्ष के यज्ञ को नष्ट करने का आदेश दिया। वीरभद्र ने यज्ञ को ध्वस्त कर दिया और दक्ष का सिर काट दिया। बाद में, ब्रह्मा और विष्णु के निवेदन पर, शिव ने दक्ष को जीवनदान दिया और उन्हें बकरे का सिर लगाया।
सती का पुनर्जन्म
सती ने अगले जन्म में हिमालय और मैनावती की पुत्री के रूप में जन्म लिया और पार्वती के नाम से जानी गईं। उन्होंने पुनः कठोर तपस्या की और शिव से पुनः विवाह किया।
सती माता के महत्व
पतिव्रता धर्म
सती माता अपने पति शिव के प्रति अत्यंत समर्पित थीं। उनका जीवन पतिव्रता धर्म का सर्वोच्च उदाहरण है।
शक्ति और भक्ति
सती माता शक्ति और भक्ति की देवी मानी जाती हैं। उनका जीवन दृढ़ संकल्प और अडिग विश्वास का प्रतीक है।
स्त्री शक्ति
सती की कथा स्त्री शक्ति और उनकी आत्मनिर्भरता का प्रतीक है। यह कथा दर्शाती है कि स्त्री अपनी शक्ति और सम्मान के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती है।
सती पूजा और स्मरण
सती माता की पूजा विशेष रूप से महिलाओं द्वारा की जाती है, जो अपने पति और परिवार के कल्याण के लिए उनका आशीर्वाद प्राप्त करना चाहती हैं। विभिन्न स्थानों पर सती माता के मंदिर स्थित हैं, जहां भक्तगण श्रद्धा और भक्ति से उनकी पूजा करते हैं। सती माता की कथा और उनका बलिदान हमें सच्ची भक्ति, समर्पण और आत्म-सम्मान की प्रेरणा देते हैं।