मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत कथा भगवान गणेश की महिमा और उनके चमत्कारों को दर्शाती है। यह कथा व्रत करने वालों के लिए प्रेरणादायक मानी जाती है और इसमें गणेश जी की कृपा से भक्तों के संकटों का निवारण होने का उल्लेख किया गया है। कथा का संक्षिप्त वर्णन इस प्रकार है:
व्रत कथा
प्राचीन समय में एक नगर में सुमंत नामक एक धर्मपरायण ब्राह्मण रहता था। उनकी पत्नी का नाम दीक्षा था और उनका एक पुत्र था, जिसका नाम सुमुख था। सुमुख अत्यंत बुद्धिमान, विनम्र और भगवान गणेश का परम भक्त था। एक बार नगर के राजा ने एक यज्ञ का आयोजन किया और उसमें सभी ब्राह्मणों को आमंत्रित किया। यज्ञ में सुमंत और सुमुख भी गए। यज्ञ के दौरान एक विशेष अनुष्ठान में राजा ने सभी ब्राह्मणों को उपहार दिए। दुर्भाग्यवश, सुमुख को उपहार नहीं दिया गया। इसका कारण था कि वह आर्थिक रूप से कमजोर था और समाज में उसका प्रभाव कम था। सुमुख ने यह अपमान सहन किया और घर लौटकर भगवान गणेश की आराधना में लीन हो गया। उसने मार्गशीर्ष संकष्टी चतुर्थी का व्रत करना आरंभ किया। उसने भगवान गणेश की विधिपूर्वक पूजा की और पूरे मनोयोग से इस व्रत का पालन किया। कुछ समय बाद, राजा को एक गंभीर संकट का सामना करना पड़ा। यज्ञ के अधूरे कार्य के कारण नगर में सूखा पड़ गया, और लोगों में अशांति फैल गई। राजा ने ज्ञानी ब्राह्मणों से उपाय पूछा। उन्होंने बताया कि राजा को अपने अपमानित प्रजा, विशेषकर सुमुख से क्षमा मांगनी होगी और भगवान गणेश का व्रत करना होगा। राजा ने सुमुख से क्षमा मांगी और उसके साथ गणेश चतुर्थी का व्रत किया। व्रत पूरा होते ही नगर में वर्षा होने लगी, फसलें लहलहा उठीं, और समृद्धि लौट आई।व्रत का महत्व
इस कथा से यह संदेश मिलता है कि भगवान गणेश के प्रति सच्ची श्रद्धा और व्रत पालन से सभी संकट दूर होते हैं। मार्गशीर्ष संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत करने से सुख, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति होती है।व्रत विधि
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- भगवान गणेश की मूर्ति या चित्र के समक्ष दीप जलाएं और पूजा करें।
- गणेश जी को दूर्वा, मोदक, और फल अर्पित करें।
- दिनभर उपवास रखें और गणेश जी के मंत्रों का जाप करें।
- रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूर्ण करें।