मौनी अमावस्या की कहानी
मौनी अमावस्या माघ मास (जनवरी-फरवरी) की अमावस्या को मनाई जाती है। "मौन" शब्द संस्कृत से लिया गया है, जिसका अर्थ है "चुप्पी।" हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य अवतार धारण कर वेदों की रक्षा की थी। ऐसा माना जाता है कि इस दिन पवित्र स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
मौनी अमावस्या का महत्व
मौनी अमावस्या का आध्यात्मिक महत्व बहुत अधिक है। मौन व्रत रखने से आत्म-अनुशासन, मानसिक स्पष्टता और आध्यात्मिक विकास होता है। भक्त गंगा, यमुना और सरस्वती जैसी पवित्र नदियों में स्नान करते हैं, जिसे "गंगा स्नान" कहा जाता है। यह दिन पितरों की पूजा और तर्पण के लिए भी अत्यंत शुभ माना जाता है।
मौनी अमावस्या मनाने की विधियां
मौन व्रत
भक्त पूरे दिन मौन व्रत रखते हैं ताकि आत्मनिरीक्षण और आध्यात्मिक जागरूकता प्राप्त की जा सके। यह आंतरिक शांति और ध्यान का अभ्यास है।
पवित्र स्नान
सूर्योदय के समय पवित्र नदियों में स्नान करना सबसे महत्वपूर्ण विधि है। ऐसा माना जाता है कि इन नदियों का जल इस दिन विशेष रूप से पवित्र और आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर होता है।
दान-पुण्य
कपड़े, भोजन और धन का दान करना इस दिन पुण्य का कार्य माना जाता है। गायों और पक्षियों को भोजन देना भी आम प्रथा है।
पितृ तर्पण
भक्त अपने पूर्वजों को सम्मानित करने और उनका आशीर्वाद लेने के लिए अनुष्ठान करते हैं। भोजन, जल और प्रार्थनाओं का अर्पण परिवार में शांति और समृद्धि लाने वाला माना जाता है।
आगामी मौनी अमावस की तिथियाँ
- 18 जनवरी 2026, रविवर