नल-दमयंती की कथा महाभारत के वनपर्व में वर्णित है। यह कथा प्रेम, विश्वास, और कठिनाइयों का सामना कर जीवन को सफल बनाने की प्रेरणा देती है।
नल और दमयंती का परिचय
नल निषध देश के राजा थे। वे वीर, पराक्रमी और धर्मपरायण थे। साथ ही, वे अश्व संचालन और रसोई कला में भी निपुण थे। दमयंती विदर्भ देश के राजा भीम की पुत्री थीं। उनकी सुंदरता और गुणों की प्रशंसा पूरे संसार में होती थी।नल और दमयंती का प्रेम
एक दिन नल को जंगल में दो हंस मिले। हंसों ने उन्हें बताया कि विदर्भ की राजकुमारी दमयंती आपके गुणों की प्रशंसा करती हैं और आपसे विवाह करना चाहती हैं। नल ने हंसों को अपना संदेश देकर दमयंती के पास भेजा। हंसों के माध्यम से दमयंती ने भी नल के प्रति अपने प्रेम को स्वीकार किया।दमयंती का स्वयंवर
राजा भीम ने दमयंती के लिए स्वयंवर का आयोजन किया। अनेक राजा-महाराजा और देवता स्वयंवर में भाग लेने आए। स्वयंवर में भगवान इंद्र, वरुण, अग्नि, और यमराज ने भी भाग लिया। दमयंती ने अपने हृदय की बात सुनी और नल को वरमाला पहनाई। देवताओं ने उनकी भक्ति और प्रेम को स्वीकार कर उन्हें आशीर्वाद दिया।काली का श्राप और नल का वनवास
दमयंती और नल का दांपत्य जीवन सुखी था। लेकिन दुर्भाग्यवश, काली नामक एक असुर ने नल को श्राप दिया।नल को जुए की आदत लग गई, और वे अपना सारा राज्य हार गए। उन्हें अपने राज्य से बाहर निकाल दिया गया। दमयंती ने अपने पति का साथ नहीं छोड़ा और उनके साथ वन में रहने चली गईं।नल और दमयंती का वियोग
वनवास के दौरान, नल ने यह सोचकर दमयंती को छोड़ दिया कि उनके साथ रहने से दमयंती को कष्ट होगा।दमयंती अपने पति को ढूँढ़ने के लिए विदर्भ लौट आईं। उन्होंने विभिन्न उपायों से नल की खोज की।पुनर्मिलन और राज्य की पुनः प्राप्ति
दमयंती ने अपने बुद्धिमानी से नल का पता लगाया। नल ने कर्तव्य का पालन करते हुए स्वयं को सुधार लिया। नल ने एक बार फिर जुए में कौशल दिखाकर अपना राज्य वापस जीत लिया। इसके बाद नल और दमयंती ने सुखपूर्वक राज्य किया।कथा से शिक्षा
- सच्चा प्रेम: नल और दमयंती का प्रेम हर परिस्थिति में अटूट रहा।
- धैर्य और विश्वास::कठिन परिस्थितियों में भी दोनों ने धैर्य नहीं खोया।
- आत्मसुधार:: नल ने अपने दोषों को पहचाना और उन्हें सुधारने का प्रयास किया।