भगवान विष्णु ने पृथ्वी और सृष्टि की रक्षा के लिए समय-समय पर विभिन्न अवतार लिए हैं। दस प्रमुख अवतारों में से मत्स्य अवतार पहला अवतार है। इस अवतार की कथा सृष्टि के विनाश और पुनः सृजन से संबंधित है।
मत्स्य अवतार की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग के अंत में एक बार राजा सत्यव्रत (जो बाद में वैवस्वत मनु कहलाए) नदी के किनारे तपस्या कर रहे थे। एक दिन जब वे नदी में स्नान कर रहे थे और जल से अंजलि भरकर भगवान को अर्पित कर रहे थे, तभी उनके हाथ में एक छोटी सी मछली आ गई। मछली ने राजा से प्रार्थना की, "हे राजन, मैं बहुत छोटी और असहाय हूँ। बड़े जीव मुझे खा सकते हैं। कृपा कर मेरी रक्षा करें।" राजा सत्यव्रत को मछली पर दया आई और उन्होंने उसे अपने कमंडल में डाल लिया। लेकिन, आश्चर्यजनक रूप से मछली जल्दी ही बड़ी हो गई और राजा से कहा, "मुझे यहाँ से बड़े स्थान पर ले चलो, क्योंकि अब मैं कमंडल में नहीं रह सकती।" राजा ने उसे एक तालाब में डाल दिया, लेकिन मछली और बड़ी हो गई। फिर उन्होंने उसे नदी में छोड़ा, परंतु मछली का आकार बढ़ता ही गया। अंत में राजा ने उसे समुद्र में छोड़ दिया। तब मछली ने अपने असली रूप का दर्शन दिया और बताया कि वह स्वयं भगवान विष्णु हैं। भगवान ने राजा से कहा, "सतयुग के अंत में सृष्टि का प्रलय होगा। इस प्रलय में सब कुछ जलमग्न हो जाएगा। तुम एक विशाल नाव तैयार करो और उसमें सभी प्राणियों, वनस्पतियों और वेदों को सुरक्षित रखो। जब प्रलय आए, तब मैं विशाल मछली के रूप में तुम्हारे पास आऊँगा। तुम मेरी शरण में रहना।"मत्स्य अवतार का महत्व
- सृष्टि की रक्षा: भगवान विष्णु ने प्रलय के समय सृष्टि को विनाश से बचाया।
- धर्म की स्थापना: वेदों और धर्मग्रंथों की रक्षा कर उन्होंने ज्ञान का संरक्षण किया।
- भक्तों की सहायता: राजा सत्यव्रत को मार्गदर्शन देकर भगवान ने यह संदेश दिया कि वे सदैव धर्म और सत्य के रक्षक हैं।