पोंगल की कहानी
पोंगल तमिलनाडु का एक प्रसिद्ध फसल उत्सव है, जो सूर्य देव को समर्पित है। यह शब्द "पोंगु" से लिया गया है, जिसका अर्थ है "उफान" या "खुशहाली।" यह उत्सव प्राचीन कृषि परंपराओं से जुड़ा हुआ है, जिसमें किसान अच्छी फसल के लिए आभार व्यक्त करते थे। पोंगल का संबंध भगवान कृष्ण से भी है, जिन्होंने इंद्र देव के प्रकोप से गांववासियों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत उठाया था।
पोंगल का महत्व
पोंगल का तमिल संस्कृति और धर्म में विशेष महत्व है। यह फसल कटाई के साथ-साथ तमिल कैलेंडर के "थाई" महीने की शुरुआत का प्रतीक है। यह त्योहार सूर्य, वर्षा और पशुधन के प्रति आभार व्यक्त करता है। इसके अलावा, यह मकर संक्रांति के साथ मेल खाता है और पूरे भारत में अलग-अलग रूपों में मनाया जाता है। पोंगल परिवार और समाज को एकजुट करता है और खुशहाली का प्रतीक है।
पोंगल मनाने की विधि
भोगी पोंगल (पहला दिन)
पहले दिन को भोगी पोंगल कहा जाता है। इस दिन घरों की सफाई की जाती है और पुराने सामानों को जलाकर नए शुरुआत की जाती है। लोग इसे गीत और नृत्य के साथ मनाते हैं।
सूर्य पोंगल (दूसरा दिन)
दूसरे दिन सूर्य पोंगल मनाया जाता है। इस दिन नई फसल से बनी विशेष डिश "पोंगल" तैयार की जाती है और सूर्य देव को अर्पित की जाती है।
मट्टू पोंगल (तीसरा दिन)
तीसरे दिन मट्टू पोंगल मनाया जाता है, जो पशुधन को समर्पित होता है। गाय और बैलों को सजाया जाता है और विशेष भोज्य पदार्थ खिलाए जाते हैं।
कानूम पोंगल (चौथा दिन)
चौथा दिन कानूम पोंगल होता है, जिसमें परिवार और दोस्तों के साथ मेल-मिलाप किया जाता है। लोग एक-दूसरे को उपहार देते हैं और सामूहिक भोजन करते हैं।
आगामी पोंगल की तिथियाँ
- 14 जनवरी 2026, बुधवार