विजया पार्वती व्रत देवी पार्वती और भगवान शिव को समर्पित है। यह व्रत विशेष रूप से श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को किया जाता है। इस व्रत का पालन करने से व्यक्ति को सुख, सौभाग्य, और पारिवारिक समृद्धि प्राप्त होती है। विशेष रूप से यह व्रत विवाहित स्त्रियां अपने पति की दीर्घायु और वैवाहिक सुख के लिए करती हैं।
व्रत कथा
प्राचीन समय में एक राजा था, जिसका नाम चंद्रसेन था। वह अत्यंत धार्मिक, न्यायप्रिय और प्रजा का हित चाहने वाला राजा था। एक बार उसे एक दुर्गम युद्ध में जाना पड़ा। युद्ध अत्यंत कठिन था और उसकी जीत की संभावना कम दिखाई दे रही थी। राजा ने युद्ध से पहले भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना की। उसने कठिन तप किया और देवी पार्वती को प्रसन्न करने के लिए व्रत का पालन किया। माता पार्वती उसकी भक्ति से प्रसन्न हुईं और उसे दर्शन दिए। उन्होंने कहा, "हे चंद्रसेन! मैं तुम्हारे इस व्रत से प्रसन्न हूं। मैं तुम्हें विजय का वरदान देती हूं। तुम्हारा यह युद्ध सफल होगा।" माता पार्वती के आशीर्वाद से राजा चंद्रसेन ने न केवल युद्ध में विजय प्राप्त की, बल्कि अपने राज्य को भी समृद्धि और शांति से भर दिया। तभी से इस व्रत को विजया पार्वती व्रत के नाम से जाना जाने लगा। यह व्रत सभी प्रकार की कठिनाइयों को दूर करने और सफलता प्राप्त करने के लिए किया जाता है।व्रत की विधि
स्नान और शुद्धता
प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहनें।व्रत का संकल्प
देवी पार्वती और भगवान शिव की मूर्ति या चित्र के समक्ष व्रत का संकल्प लें।पूजन सामग्री
फूल, चंदन, रोली, अक्षत, दूर्वा, बेलपत्र, दूध, दही, शहद, और मिठाई रखें।पूजा विधान
भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति को गंगा जल से स्नान कराएं। चंदन, पुष्प, और बेलपत्र चढ़ाएं।कथा श्रवण
विजया पार्वती व्रत कथा सुनें या पढ़ें।आरती
शिव और पार्वती की आरती करें।व्रत का पालन
दिनभर व्रत रखें और फलाहार करें।व्रत का पारण
अगले दिन ब्राह्मण भोजन और दान देकर व्रत का समापन करें।व्रत का महत्व
- इस व्रत को करने से विवाहित महिलाओं को अखंड सौभाग्य और उनके पति की दीर्घायु का वरदान मिलता है।
- यह व्रत सभी प्रकार के विघ्न, क्लेश, और परेशानियों को दूर करता है।
- इसे करने से परिवार में सुख, शांति, और समृद्धि बनी रहती है।
- भगवान शिव और माता पार्वती की कृपा से भक्त को जीवन में सफलता और आत्मिक शांति प्राप्त होती है।