व्यास पूजा एक आध्यात्मिक और पारंपरिक समारोह है जो गुरु पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। यह विशेष रूप से महर्षि वेदव्यास जी को श्रद्धांजलि देने के लिए समर्पित होता है, जिन्होंने वेदों का विभाजन कर उन्हें सुलभ बनाया और अठारह पुराण, महाभारत तथा श्रीमद्भगवद्गीता जैसी महान रचनाएँ कीं।इसे गुरु-पूजा भी कहा जाता है क्योंकि यह संपूर्ण गुरु परंपरा को सम्मानित करने का दिन है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह दिन गुरु पूर्णिमा के नाम से भी प्रसिद्ध है।
व्यास पूजा का महत्व:
महर्षि वेदव्यास को सभी सनातन धर्म के ग्रंथों का रचयिता माना जाता है। इस दिन को गुरु की भक्ति और सम्मान का प्रतीक माना जाता है। गुरु को ब्रह्मा, विष्णु, और महेश का स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जाती है। सनातन परंपरा में कहा गया है:"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥"
व्यास पूजा की विधि:
पूजा की तैयारी: पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान का चयन करें और वहां एक साफ वस्त्र बिछाकर वेदव्यास की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। स्नान और ध्यान: स्वयं स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजा स्थल पर दीप जलाएं और धूप-अगरबत्ती लगाएं। मंत्र और स्तोत्र: वेदव्यास के मंत्र और स्तोत्र का पाठ करें। "व्यासाय विष्णुरूपाय व्यासरूपाय विष्णवे। नमो वै ब्रह्मनिधये वासिष्ठाय नमो नमः।।" इस मंत्र का उच्चारण करें। पूजन सामग्री: वेदव्यास की मूर्ति या चित्र पर फूल, अक्षत (चावल), चंदन, रोली और वस्त्र अर्पित करें। प्रसाद:पूजा के बाद प्रसाद वितरित करें और गुरुओं का आशीर्वाद प्राप्त करें।व्यास पूजा मंत्र / श्लोक
गुरु मंत्र
गुरु ब्रह्मा गुरु विष्णुः गुरु देवो महेश्वरः। गुरु साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
व्यास स्तुति
नमः परम ऋषये वेदव्यासाय विष्णवे। यस्य प्रसादाद अहम एतद् ब्रवीम्यहम्॥
व्यास पूजा केवल किसी व्यक्ति विशेष की पूजा नहीं है, यह उस ज्ञान, मार्गदर्शन और प्रकाश की पूजा है जो गुरु अपने शिष्य को देता है। यह दिन हमें यह याद दिलाता है कि जीवन में सच्चा उत्थान केवल सद्गुरु की कृपा से ही संभव है।आगामी व्यास पूजा की तिथियाँ
- 29 जुलाई 2026, बुधवार