01 Dec 2025 आध्यात्मिक मार्गदर्शन विश्वसनीय जानकारी

कैला देवी चालीसा

kaila-mata

॥ दोहा ॥

जय जय कैला मात हे तुम्हे नमाउ माथ ॥ शरण पडूं में चरण में जोडूं दोनों हाथ ॥ आप जानी जान हो मैं माता अंजान ॥ क्षमा भूल मेरी करो करूँ तेरा गुणगान ॥

॥ चौपाई ॥

जय जय जय कैला महारानी । नमो नमो जगदम्ब भवानी ॥ सब जग की हो भाग्य विधाता । आदि शक्ति तू सबकी माता ॥ दोनों बहिना सबसे न्यारी । महिमा अपरम्पार तुम्हारी ॥ शोभा सदन सकल गुणखानी । वैद पुराणन माँही बखानी ॥4॥ जय हो मात करौली वाली । शत प्रणाम कालीसिल वाली ॥ ज्वालाजी में ज्योति तुम्हारी । हिंगलाज में तू महतारी ॥ तू ही नई सैमरी वाली । तू चामुंडा तू कंकाली ॥ नगर कोट में तू ही विराजे । विंध्यांचल में तू ही राजै ॥8॥ धौलागढ़ बेलौन तू माता । वैष्णवदेवी जग विख्याता ॥ नव दुर्गा तू मात भवानी । चामुंडा मंशा कल्याणी ॥ जय जय सूये चोले वाली । जय काली कलकत्ते वाली ॥ तू ही लक्ष्मी तू ही ब्रम्हाणी । पार्वती तू ही इन्द्राणी ॥12॥ सरस्वती तू विद्या दाता । तू ही है संतोषी माता ॥ अन्नपुर्णा तू जग पालक । मात पिता तू ही हम बालक ॥ तू राधा तू सावित्री । तारा मतंग्डिंग गायत्री ॥ तू ही आदि सुंदरी अम्बा । मात चर्चिका हे जगदम्बा ॥16॥ एक हाथ में खप्पर राजै । दूजे हाथ त्रिशूल विराजै ॥ कालीसिल पै दानव मारे । राजा नल के कारज सारे ॥ शुम्भ निशुम्भ नसावनि हारी । महिषासुर को मारनवारी ॥ रक्तबीज रण बीच पछारो । शंखासुर तैने संहारो ॥20॥ ऊँचे नीचे पर्वत वारी । करती माता सिंह सवारी ॥ ध्वजा तेरी ऊपर फहरावे । तीन लोक में यश फैलावे ॥ अष्ट प्रहर माँ नौबत बाजै । चाँदी के चौतरा विराजै ॥ लांगुर घटूअन चलै भवन में । मात राज तेरौ त्रिभुवन में ॥24॥ घनन घनन घन घंटा बाजत । ब्रह्मा विष्णु देव सब ध्यावत ॥ अगनित दीप जले मंदिर में । ज्योति जले तेरी घर-घर में ॥ चौसठ जोगिन आंगन नाचत । बामन भैरों अस्तुति गावत ॥ देव दनुज गन्धर्व व किन्नर । भूत पिशाच नाग नारी नर ॥28॥ सब मिल माता तोय मनावे । रात दिन तेरे गुण गावे ॥ जो तेरा बोले जयकारा । होय मात उसका निस्तारा ॥ मना मनौती आकर घर सै । जात लगा जो तोंकू परसै ॥ ध्वजा नारियल भेंट चढ़ावे । गुंगर लौंग सो ज्योति जलावै ॥32॥ हलुआ पूरी भोग लगावै । रोली मेहंदी फूल चढ़ावे ॥ जो लांगुरिया गोद खिलावै । धन बल विद्या बुद्धि पावै ॥ जो माँ को जागरण करावै । चाँदी को सिर छत्र धरावै ॥ जीवन भर सारे सुख पावै । यश गौरव दुनिया में छावै ॥36॥ जो भभूत मस्तक पै लगावे । भूत-प्रेत न वाय सतावै ॥ जो कैला चालीसा पढ़ता। नित्य नियम से इसे सुमरता ॥ मन वांछित वह फल को पाता । दुःख दारिद्र नष्ट हो जाता ॥ गोविन्द शिशु है शरण तुम्हारी । रक्षा कर कैला महतारी ॥40॥

॥ दोहा ॥

संवत तत्व गुण नभ भुज सुन्दर रविवार । पौष सुदी दौज शुभ पूर्ण भयो यह कार ॥
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